Sunday, January 29, 2023

श्री राधाष्टकम् स्त्रोत Shree Radhasthakam Stotram

 

श्री राधाष्टकम्  स्त्रोत Shree Radhasthakam Stotram

 

नमस्ते श्रियै राधिकायै परायै, नमस्ते नमस्ते मुकुन्दप्रियायै

सदानन्दरूपे प्रसीद त्वमन्तः,  प्रकाशे स्फुरन्ती मुकुन्देन सार्धम् ।।

श्री राधिके! तुम्हीं श्रेय मार्ग की अधिष्ठात्री हो, तुम्हें नमस्कार है, तुम्हीं पराशक्ति राधिका हो, तुम्हें नमस्कार है। तुम मुकुन्द की प्रियतमा हो, तुम्हें नमस्कार है। सदानन्दस्वरूपे देवि! तुम्हीं मेरे अन्त:करण के प्रकाश में श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण के साथ सुशोभित होती हुई मुझ पर प्रसन्न होओ ।।१।।।

स्ववासोपहारं यशोदासुतं वा, स्वदध्यादिचौरं समाराधयन्तीम्।

स्वदाम्नोदरे या वबन्धाशु नीव्या, प्रपद्ये नु दामोदरप्रेयसीं ताम्।।२।।

जो अपने वस्त्र का अपहरण करने वाले अथवा अपने दूध-दही, माखन आदि चुराने वाले यशोदानन्दन श्रीकृष्ण की साधना करती हैं, जिन्होंने अपनी नीवी (प्रेम) के बन्धन से श्रीकृष्ण के उदर (रस) को शीघ्र ही बांध लिया, जिसके कारण उनका नाम "दामोदर" हो गया; उन दामोदर की प्रियतमा श्री राधा रानी की में निश्चय ही शरण लेता हूँ।।२।।

दुराराध्यामाराध्य कृष्णं वशे त्वं, महाप्रेमपूरेण राधाऽभिधाऽभूः।

स्वयं नामकीर्त्या हरौप्रेम यच्छ प्रपन्नाय मे कृष्णरूपे समक्षम्।।३।।

श्री राधे ! जिनकी आराधना कठिन है, उन श्रीकृष्ण की भी आराधना करके अपने महान प्रेमसिन्धु की बाढ़ से उन्हें वश में कर लिया। श्रीकृष्ण की अराधना के कारण तुम राधानाम से विख्यात हुई। श्रीकृष्णस्वरूपे ! अपना यह नामकरण स्वयं तुमने किया है, इससे अपने सन्मुख आये हुए मुझ शरणागत को श्री हरिका प्रेम प्रदान करो ।।३।।

मुकुन्दस्त्वया प्रेमडोरेण बद्धः, पतङ्गो यथा त्वामनुभ्राम्यमाणः।

उपक्रीडयन् हादर्दमेवानुगच्छन्  कृपावर्तते कारयातो मयीष्टिम्।।४।।

तुम्हारी प्रेम डोर में बंधे हुए भगवान श्री कृष्ण पतंग की भाँति सदा तुम्हारे आस-पास ही चक्कर लगाते रहते हैं, हार्दिक प्रेम का अनुसरण करके तुम्हारे पास ही रहते हुए क्रीडा करते हैं। देवि! तुम्हारी कृपा सब पर है, अतः मेरे द्वारा अपनी आराधना करवाओ ।। ४।।

व्रजन्तीं स्ववृन्दावने नित्यकालं, मुकुन्देन साकं विधायाङ्कमालम् ।

समामोक्ष्यमाणाऽनुकम्पाकटाक्षैः, श्रियं चिन्तयेत्सच्चिदानन्दरूपाम्।।५।।

जो प्रतिदिन नियत समय पर श्री श्यामसुन्दर के साथ उन्हें अपने अङ्क की माला अर्पित करके अपनी लीलाभूमि-वृंदावन में विहार करती हैं, भक्तजनों पर प्रयुक्त होने वाले कृपा-कटाक्षों से सुशोभित उन सच्चिदानन्दस्वरूपा श्री लाड़िली का सदा चिन्तन करे ।।५।।

 

मुकुन्दानुरागेण रोमाञ्चिताङ्गै रहं व्याप्यमानां तनुस्वेद-विन्दुम् ।

महाहार्दवृष्ट्या कृपापाङ्गदृष्ट्या, समालोकयन्तीं कदा त्वां विचक्षे ।।६।।

श्री राधे ! तुम्हारे मन-प्राणों में आनन्दकन्द श्री कृष्ण का प्रगाढ अनुराग व्याप्त हैं । अतएव तुम्हारे श्री अङ्ग सदा रोमाञ्च से विभूषित हैं और अंग-अंग सूक्ष्म स्वेद-बिंदुओं से सुशोभित होता है। तुम अपनी कृपा-कटाक्ष से परिपूर्ण दृष्टि द्वारा महान प्रेम की वर्षा करती हुई मेरी ओर देख रही हो; इस अवस्था में मुझे कब तुम्हारा दर्शन होगा ? ।। ६।।

यदङ्कावलोकं महालालसौघं  मुकुन्दः करोति स्वयं ध्येयपादः।।

पदं राधिके ते सदा दर्शयान्त- ह्वेदिस्थं नमन्तं किरद्रौचिषं माम्।।७।।

श्री राधिके ! यद्यपि श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण स्वयं ही ऐसे हैं कि उनके चारू-चरणों का चिन्तन किया जाए, तथापि वे तुम्हारे चरण-चिह्नों के अवलोकन की बड़ी लालसा रखते हैं। देवि ! मैं नमस्कार करता हूँ। इधर मेरे अन्तः करण के हृदय-देश में ज्योति-पुञ्ज बिखेरते हुए अपने चिन्तनीय चरणारविन्द का मुझे दर्शन कराओ ।।७।।

सदा राधिका-नाम जिह्वाग्रतः स्यात् सदा राधिकारूपमक्ष्यग्रमास्ताम्।

श्रुतौ राधिकाकीर्तिरन्तः स्वभावे, गुणा राधिकायाः श्रिया एतदीहे ।।८।।

मेरो जिह्वा के अग्रभाग पर सदा श्रीराधिका का नाम विराजमान रहे । मेरे नेत्रों के समक्ष सदा श्रीराधा का ही रूप प्रकाशित हो । कानों में श्रीराधिका की कीर्ति-कथा गूंजती रहे और अन्तर्हदय में श्रेय अधिष्ठात्री श्रीराधा के ही असंख्य गुणगणों का चिन्तन हो, यही मेरी शुभकामना है ।।८।।

इदं त्वष्टकं राधिकायाः प्रियायाः, पठेयुः सदैवं हि दामोदरस्य।

सुतिष्ठन्ति वृन्दावने कृष्णधाम्नि, सखीमूर्तयो युग्मसेवानुकूलाः !||९।।

दामोदरप्रिया श्री राधा की स्तुति से संबंध रखने वाले इन आठ श्लोकों का जो लोग सदा इसी रूप में पाठ करते हैं, वे श्रीकृष्णधाम वृन्दावन में युगल सरकार की सेवा के अनुकूल सखी-शरीर पाकर सुख से रहते हैं ।।९।।

 

No comments:

Post a Comment